शिक्षा को मुफ्त और सुलभ बनाने का वादा
अब गांव में बाहर से लोग आरव के स्कूल को देखने आने लगे। वे उसकी सरलता और बच्चों के प्रति उसके समर्पण को देखकर दंग रह जाते। कई दानदाता उसके स्कूल की मदद के लिए आगे आए, लेकिन आरव ने यह सुनिश्चित किया कि शिक्षा मुफ्त और सुलभ रहे। उसने कहा, “यह स्कूल मेरा सपना है, और मैं चाहता हूं कि यहां हर बच्चा बिना किसी बाधा के पढ़ाई कर सके।”
नेहा की जिंदगी भी धीरे-धीरे बदल रही थी। उसने आरव के दिए हुए सबक को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया था। उसने अपने बच्चों को ईमानदारी और मेहनत का महत्व सिखाया। वह खुद भी समाज के लिए काम करने लगी। उसने एक छोटा व्यवसाय शुरू किया और अपने बच्चों की शिक्षा के लिए पैसे जुटाने लगी।
एक दिन, नेहा के बड़े बेटे ने आरव के स्कूल में दाखिला लेने की इच्छा जताई। नेहा पहले तो हिचकिचाई, लेकिन अपने बेटे की खुशी के लिए उसने यह कदम उठाया। उसने आरव को पत्र लिखकर अपने बेटे को स्कूल में दाखिला देने का अनुरोध किया। आरव ने बिना किसी भेदभाव के इस अनुरोध को स्वीकार किया।