आरव का समर्पण और स्कूल की सफलता
नेहा का बेटा जब स्कूल आया, तो उसने आरव को देखकर नमस्ते किया। आरव ने मुस्कुराते हुए उसे अपने पास बुलाया और कहा, “यह स्कूल तुम्हारे जैसे बच्चों के लिए ही है। यहां तुम सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, बल्कि जिंदगी के सबक भी सीखोगे।” यह सुनकर नेहा का बेटा बहुत खुश हुआ।
आरव और नेहा के बीच अब कोई संवाद नहीं था, लेकिन उनके दिलों में एक-दूसरे के प्रति कोई कड़वाहट नहीं बची थी। दोनों ने अपनी-अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने का फैसला किया था। आरव अब पूरी तरह से अपने काम में डूब चुका था, और नेहा ने अपनी दुनिया को बेहतर बनाने का रास्ता खोज लिया था।
आरव के स्कूल में अब सैकड़ों बच्चे पढ़ने लगे थे। वह न केवल शिक्षा बल्कि जीवन के मूल्यों पर भी ध्यान देता था। वह बच्चों को सिखाता था कि किसी भी मुश्किल में हार मानना सही नहीं है। उसने अपने अनुभवों को बच्चों के सामने रखा और कहा, “जिंदगी में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, अगर हम मेहनत और ईमानदारी से काम करेंगे, तो सफलता हमें जरूर मिलेगी।”